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चाणक्य-नीति ( दोहे )




*चाणक्य-नीति के दोहे*
अर्जित धन अन्याय से,ठहरे दस ही वर्ष।
आते ग्यारह वर्ष ही,होता है अपकर्ष।।

ज्ञान-बहुलता है यहाँ, पर हैं विघ्न अनेक।
स्वल्प अवधि में सीख लें,रख जल-दुग्ध-विवेक।।

देखा-सुना न स्वर्ण मृग,पर लोलुप रघुनाथ।
ऐसे काल विनाश में,बुद्धि न देती साथ ।।

महल-शिखर पर बैठ कर,कौआ बने न हंस।
गुण से मिले महानता,गुण चरित्र-शुचि अंश।।

होते सब संतुष्ट सुन,मधुर वचन अनमोल।
नहीं कृपणता ठीक है,मधुर वचन ही बोल।।
           ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
               ९९१९४४६३७२





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3 Comments

Mohammed urooj khan

12-Feb-2024 11:45 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

10-Feb-2024 11:19 PM

👌👏

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Milind salve

10-Feb-2024 02:05 PM

Nice

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